संकट की इस घड़ी से हमें क्या सीख लेनी चाहिए?

पूरा देश और दुनिया कोरोना महामारी रूपी संकट से झूझ रहा है. न जाने कितने इसका शिकार हुए और कितने शरीर त्याग गए. मगर प्रकृति में हुए या यूं कहें किए गए असंतुलन को प्रकृति स्वयं सन्तुलित कर लेती है, यह कहना भी कुछ हद तक गलत नहीं है. क्योंकि समय समय पर आयी प्राकृतिक आपदाओं ने यह साबित किया है कि उससे बड़ा इस ब्रह्मांड में कोई नहीं है, चाहे मनुष्य कितनी भी उन्नति क्यों न कर ले.

अब आप सोच रहे होंगे कि हम ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं. वो इसलिए क्योंकि हमें न तोह प्रकृति की परवाह है, न ही उन संसाधनों की जोकि हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. जैसे कि जल.

जल ही जीवन है, यह सिर्फ एक वाक्य बनकर किताबों में पड़ा हुआ और दीवारों पर लिखा एक वाक्य ही नहीं अपितु जीवन की सच्चाई है जिसे सब जानते हुए अनजान बनने की कोशिश करते रहते हैं. परन्तु बाढ़ व सूखा आदि आपदाएं यह प्रमाणित करती रही हैं कि मनुष्य प्रकृति की संतान है, प्रकृति जन्म देना भी जानती है और संहार करना भी.

मगर हम अभी भी सुधरने को तैयार नहीं. अगर हम बात करें, पानी की तो हमारे देश में कितना पानी यूँही बहा दिया जाता है. जबकि यात्रा के समय वही पानी 20 रुपये में 1 लीटर खरीद कर पीते हैं. अब हम अगर हिसाब लगाएं, तो करोड़ों का पानी रोज व्यर्थ चला जाता है. बड़े शहरों में तो पानी बचा ही नहीं है धरती में जिसको पिया जा सके. हालांकि अब वाटर प्योरिफायर की मदद से पानी को पीने योग्य बनाया जाता है, जबकि वह पानी हमें प्रकृति से निःशुल्क उपलब्ध था. मगर आज उसकी सब अलग अलग कीमत देकर पी रहे हैं. या यूं कहें जिंदगी चलाने के लिए वो 20 रुपए देने जरूरी हो गए हैं.

लेकिन अभी भी भारत के गाँव में भूमिगत जल पीने योग्य उपलब्ध है. लेकिन वहाँ अब इसकी कद्र देखने को नहीं मिलती. जबसे पानी की मोटर का अविष्कार हुआ है या समर्सिबल घर घर तक पहुँचा है, तबसे बस बटन दबाते ही पानी 1 गिलास की बजाय कई बाल्टी यूँही निकल जाता है. बहा हुआ पानी नालियों में जाकर खराब हो जाता है.

संकट की इस घड़ी हमें यही सिखाती है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हमें बहुत महंगा पड़ सकता है. अतः हमें चाहिए इसकी रक्षा करते हुए इसके संसाधनों का सेवन करें.

पानी के व्यर्थ बहने को रोकने के लिए एक उपाय यह भी सम्भव है कि हर गाँव में जल रक्षक नियुक्त किए जाएं और वो पानी को अनावश्यक रूप से बहा रहे लोगों पर कार्यवाही करें. ऐसा करना आज के समय की बहुत जरूरत है. क्योंकि कितने ही कम लोग हैं जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं. अगर कोई उनसे दूसरा व्यक्ति कोई सलाह देता है तो वो उल्टा उसे ही सुना देते हैं. अतः यह कार्य या तो वो स्वयं की जिम्मेदारी समझ कर करें अथवा सरकारी व्यक्ति द्वारा उनको दण्ड के साथ यह बात समझायी जाय.

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1 thought on “संकट की इस घड़ी से हमें क्या सीख लेनी चाहिए?”

  1. अच्छा प्रयास है। आगे भी लिखते रहें।

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